कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

राष्ट्रमाता गौमाता को 21 हज़ार दीपदान कर मनाई जाएगी देव दीपावली : चंद्रप्रकाश उपाध्याय

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डॉ मिर्जा कवर्धा

कबीरधाम। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली का पर्व देशभर में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में देव दीपावली का विशेष महत्व माना गया है। यह त्योहार दीपावली के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देव दीपावली के दिन देवी-देवता काशी की पवित्र नगरी में आते हैं और दिवाली का पर्व मनाते हैं और यहीं वजह की वाराणसी के हर घाट को इस दिपों से सजाया जाता है। काशी में देवदीपावली का विराट उत्सव इस वर्ष 27 नवंबर को मनाया जाएगा।

सनातन संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा की तिथि अत्यंत पावन मानी गई है। इस तिथि पर मनाए जाने वाले देवदीपावली के उत्सव से तीन पौराणिक प्रसंग जुड़े है। वे प्रसंग शिव, पार्वती और विष्णु पर केंद्रित है। इस अवसर पर चंद्रप्रकाश उपाध्याय ने जिले भर के सनातनियो को अधिक से अधिक संख्या में शाम 4 बजे राममंदिर में उपस्थित होने की अपील किया है।

शंकराचार्य जनकल्याण न्यास के प्रबंध ट्रस्टी चंद्रप्रकाश उपाध्याय ने बताया

शंकराचार्य जनकल्याण न्यास के प्रबंध ट्रस्टी चंद्रप्रकाश उपाध्याय ने बताया पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवाधिदेव महादेव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी दिन दुर्गारुपिणी पार्वती ने महिषासुर का वध करने के लिए शक्ति अर्जित की थी। इसी दिन गोधूलि बेला में भगवान ने मत्स्यावतार लिया था। इन तीनो ही अवसरों पर देवताओं ने काशी में दीपावली मनाई थी

रामजानकी प्रभु देवालय में 21000 दिपदान कर राष्ट्रमाता गौमाता को करेंगे समर्पित

वही, शंकराचार्य के मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने बताया कि प्रत्येक वर्ष की भांति देव दीपावली धर्मनगरी कवर्धा के रामजानकी प्रभुदेवालय में हज़ारों की संख्या में सनातनी श्रद्धालु उपस्थित हो बड़े हर्सोल्लास के साथ देवदीपावली पर्व मनाते हैं। इस दिन माताएं मंदिर प्रांगण पहुँच विभिन्न प्रकार के आकर्षित रंगोली बनाती है व घर से लाए दीपक प्रज्वलित कर प्रभु के भजन कीर्तन में लग जाते है। इस बार का देवदीपावली ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य ने गोपाष्टमी के दिन रामलीला मैदान दिल्ली से गौभक्तों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मौजूदा सरकार राष्ट्रमाता गौमाता को जल्द से जल्द घोषित करे ताकि गौवंस पर हो रहे अत्याचार पर तत्काल रोक लगाकर उसे माँ का सम्मान मिले। इसी मांग को जल्द पूरा करने भगवान से प्रार्थना करते हुए हजारों दिप दान कर हर्सोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

भव्य उत्सव की तैयरियाँ: मोतीराम चंद्रवंशी

शंकराचार्य जनकल्याण न्यास के ट्रस्टी मोतीराम चन्द्रवंशी ने बताया इस वर्ष देवदीपावली 27 नवंबर को मनाया जाना है, जिसे लेकर श्री शंकराचार्य जनकल्याण न्यास के सदस्य और सनातनी तैयारी में लग गए है। इस बार देवदीपावली में प्रज्वलित प्रत्येक दीप व न्यास के द्वारा 21 हजार दीप गौमाता राष्ट्रमाता को समर्पित व भव्य आतिशबाजी कर देवदीपावली मनाई जाएगी। वही न्यास के तरफ से श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रसाद की व्यवस्था की गई है।

दिवाली के 15 दिन बाद क्यों मनाई जाती है देव दीपावली: उमंग पांडेय

शंकराचार्य जनकल्याण न्यास के ट्रस्टी उमंग पांडेय ने बताया देव दीपावली यानी देवताओं की दीपावली। देव दीपावली मनाए जाने को लेकर कई कथाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। इन्हीं में एक कथा प्रचलित कथा के अनुसार, कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। नरकासुर का वध कर उन्होंने देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया था। त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्त होने की खुशी में सभी देवताओं ने काशी में अनेकों दीप भी जलाकर उत्सव मनाए थे। इसलिए हर साल इसी तिथि में यानी कार्तिक पूर्णिमा और दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है।

कार्तिकेय की भी होती है पूजा

इस दिन देवाधिदेव महादेव और भगवान विष्णु के साथ ही शिवपुत्र कार्तिकेय की पूजा का विशेष महात्म्य है। पूर्णिमा पर ब्रह्ममुहूर्त में उठें। दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर पहले अपने आराध्य देवी-देवता का ध्यान करें, फिर पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लें। सायं प्रदोषकाल में दीपदान का विधान है। देवालयों में दीप प्रज्जवलित करने के बाद सरोवरों अथवा गंगा तट पर दीपदान करना चाहिए। पीपल, आंवला व तुलसी के पौधे के आगे दीप जलाना चाहिए।

क्षीरसागर दान का भी विधान

कार्तिक पूर्णिमा को क्षीरसागर का प्रतीक दान भी किया जाता है। इसके अंतर्गत 24 अंगुल ऊंचे नवीन पात्र में गाय का दूध भरकर उसमें सोने या चांदी की मछली रखी जाती है। फिर उसे यथा संभव दक्षिणा और सिद्धा के साथ ब्राह्मण को दान करना चाहिए। क्षीरसागर का प्रतीक दान व्यक्ति के जीवन में समृद्धि-उत्कर्ष करता है।

देव दीपावली पूजा विधि

देव दीपावली के दिन सुबह जल्दी उठकर नदी स्नान करें। यदि किसी कारण नदी स्नान संभव न हो तो आप नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। इसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इस दिन भगवान गणेश, शिवजी, और विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. पूजा में हल्दी, कुमकुम, चंदन, अक्षत, सुपारी, मौली, जनेऊ, दूर्वा, पुष्प, फल और नैवेद्य अर्पित करें और फिर धूप दीप जलाकर आरती करें। इस दिन सुबह के साथ ही प्रदोषकाल में भी पूजा करनी चाहिए।

 

News Desk

Editor in chief, डॉ मिर्जा कवर्धा

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