स्वामी विवेकानंद पर संगोष्ठी का आयोजन, कवियों ने रामलला को केन्द्र में रखकर कविताएं पढ़ीं

Editor In Chief
डॉ मिर्जा कवर्धा
कवर्धा। वनमाली सृजन केन्द्र एवं पाठक मंच के तत्वावधान में शनिवार 13 जनवरी को सर्किट हाउस के अशोक हॉल में स्वामी विवेकानंद जयंती एवं विश्व हिंदी दिवस के परिपेक्ष्य में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विषय था–आज का वैश्विक परिदृश्य और विवेकानंद का दर्शन। दूसरा विषय था–वैश्विक स्तर पर हिंदी का बढ़ता महत्व।
शुरुआत में प्रगतिशील धारा के प्रमुख कवि एवं चिंतक डॉ. मलय को मौन श्रद्धांजलि दी गई।
विचार विमर्श शुरू करते हुए अजय चंद्रवंशी ने कहा कि विवेकानंद का दर्शन भारतीय जीवन दर्शन के प्रगतिशील तत्वों के मेल से यथार्थवादी चिंतन को आगे ले जाने वाला विचार है। नरेन्द्र कुलमित्र ने कहा कि विवेकानंद भारतीय युवाओं को विचार संपन्न शक्तिशाली बनाना चाहते थे। संतराम थवाईत ने कहा कि वे स्पष्टवादी सन्यासी थे और उनका सन्यास वीतरागी नहीं था। आदित्य श्रीवास्तव ने कहा कि उनके दर्शन में वैश्विक दृष्टिकोण था और उनके मन मे पूरे विश्व के लिए मंगल विचार था। पुष्पांजलि नागले ने अपनी विदेशयात्रा के जिक्र करते हुए बताया कि भारतीय नारी भाषा और संस्कृति का सम्मान हर देश में है। प्रभाकर शुक्ला, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, रमेश चौरिया, रोशन चंद्रवंशी, सात्विक श्रीवास्तव एवं सोम वर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। दोनों विषयों को समेटते हुए अध्यक्ष नीरज मंजीत ने कहा कि विवेकानंद ने युवावस्था में ही पाश्चात्य विचारक कांट, हेगेल, डार्विन सहित सभी पश्चिमी दार्शनिकों का विशद अध्ययन करते हुए वेदों, उपनिषदों एवं पूरे भारतीय दर्शन को आत्मसात किया था। उनके विचारों में पश्चिमी और भारतीय फलसफे के सकारात्मक मूल्य झलकते थे, इसीलिए आज भी पश्चिमी देश उन्हें सबसे बड़ा भारतीय विचारक मानते हैं।
दूसरे सत्र में आदित्य श्रीवास्तव, पुष्पांजलि नागले, सुखदेव अहिलेश्वर, रमेश चौरिया और रोशन चंद्रवंशी ने अयोध्या में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा को केन्द्र में रखकर कविताएं पढ़ीं। सात्विक श्रीवास्तव और संतराम ने व्यंग्य कविताओं का पाठ किया। नरेंद्र कुलमित्र ने मानवीय संवेदनाओं को कविता में ढाला। अजय चंद्रवंशी की ग़ज़लों में प्रेम के अभिनव तेवर झलक रहे थे। नीरज मंजीत ने नए उपमान, नवीन शब्दावली में नए वाक्य विन्यास लेकर अपनी ताज़ा प्रेम कविता सुनाई।