जिला जेल कबीरधाम में निरूद्ध बंदीगण के चरित्र, आचरण, व्यक्तिव्य निर्माण एवं पुनर्वास पर एक दिवसीय व्याख्यान, स्वामी मैथिलीशरण महाराज का हुआ एक दिवसीय व्याख्यान
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डॉ मिर्जा कवर्धा
कवर्धा, 19 जनवरी 2024। जिला जेल कबीरधाम में निरूद्ध बंदीगण के चरित्र, आचरण, व्यक्तिव्य निर्माण एवं पुनर्वास पर एक दिवसीय व्याख्यान 18 जनवरी 2024 को जिला न्यायाधीश, अध्यक्ष श्रीमती सत्यभामा अजय दुबे की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्रीरामकिंकर विचार मिशन के अध्यक्ष स्वामी श्री मैथिलीशरण महाराज थे। कार्यक्रम में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुश्री उदयलक्ष्मी सिंह परमार भी विशेष रूप से उपस्थित थी। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथिगण द्वारा दीप प्रज्जवलित करके किया गया। तत्पश्चात् अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश उदयलक्ष्मी सिंह परमार द्वारा कार्यक्रम के विषय पर प्रकाश डालते हुए मुख्य वक्ता श्रीरामकिंकर विचार मिशन के अध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण महाराज जी का संक्षिप्त परिचय सभी उपस्थित बंदीगण, अधिकारीगण एवं कर्मचारीगणों को प्रदान किया गया।
स्वामी मैथिलीशरण महाराज द्वारा अपने उद्बोधन में रामायण के विभिन्न प्रसंगों की सहायता से बंदीगण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया गया। रावण द्वारा विभीषण को लंका से निकाले जाने के प्रसंग का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा यह बताया गया कि विभीषण ने तत्काल रावण कटु वचन न कहते हुए उन्हें पितातुल्य बताते हुए रामजी द्वारा उनके कल्याण की ही बात की गई थी। इस प्रसंग में विभीषण ने तत्काल भावावेश में कार्य नहीं किया था, भावावेश में किए गए कार्य ही अधिकांशतः गलत होते है। स्वामी मैथलीशरण द्वारा बंदीगण को अभिरक्षा के दौरान मिले समय का उपयोग चिन्तन के लिए करने के लिए भी प्रेरित किया गया, ताकि बंदीगण अभिरक्षा से बाहर आने पर सही मार्ग पर चल सके। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान काल ही एक मात्र काल है अर्थात् मनुष्य को न तो भविष्य की चिंता करनी चाहिए न ही भूतकाल में हुए बातों को याद करना चाहिए, वर्तमान में प्रत्येक कार्य अच्छे से करना चाहिए। स्वामी जी ने यह भी बताया कि सम्पूर्ण रामायण में श्रीराम जी ने न तो एक भी कार्य स्वयं की इच्छा से किया न ही अपना निर्णय दूसरों पर थोपा, फिर भी राम राज्य की स्थापना की। इसके पीछे राम जी द्वारा दूसरों के सद्गुणों को आत्मसात करना तथा दुर्गणों को त्यागना बताया और प्रत्येक व्यक्ति को यहीं करने की सलाह दी।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश सत्यभामा अजय दुबे ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में यह बताया कि चरित्र निर्माण में संतजन का विशेष योगदान होता है। मानव जीवन चौरासी लाख योनियों के बाद प्राप्त होता है अतः अच्छी एवं सकारात्मक सोच रखने की सलाह जिला न्यायाधीश द्वारा बंदीगण को दी गई। मानव जीवन जन्म एवं मृत्यु की एक यात्रा है, अतः उसे दुर्गुण से दूर रहते हुए पूरी करने की सलाह भी दी गई। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण एवं जिला जेल द्वारा उपस्थित अतिथिगण, वक्तागण को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया, साथ ही स्वामी मैथिलीशरण महाराज जी द्वारा अमित प्रताप चन्द्रा, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण एवं सहायक जेल अधीक्षक राजेन्द्र बंजारे को स्वरचित पुस्तक चरितार्थ भेंट की गई। आभार प्रदर्शन अमित प्रताप चन्द्रा, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किया गया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में दुर्गेश पाण्डेय शिक्षा विभाग का विशेष सहयोग रहा, जिन्हेंने मंच संचालन किया। जिला जेल के सभी अधिकारी एवं कर्मचारीगण तथा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कर्मचारीगण इंदर सिंह मण्डावी, मनोज विश्वकर्मा एवं पी.एल.व्हीगण योगेन्द्र गहरवार, तरूण सिंह ठाकुर, डालेश्वर वर्मा, हेमन्त चन्द्रवंशी एवं किशन साहू उपिस्थत थे।