कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम एवं बंधन को दर्शाता है। 19 अगस्त सोमवार को रक्षा बँधन के दिन दोपहर 01:30 तक रहेगा भद्रा का साया *”पण्डित देव दत्त दुबे श्री शंकराचार्य शिष्य

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डॉ मिर्जा कवर्धा 

सहसपुर लोहारा-कवर्धा ,रक्षाबंधन या राखी का त्यौहार सदियों से मनाया जा रहा है जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना गया है। इस त्यौहार का मुख्य संदेश भाई और बहन के पवित्र बंधन को सम्मान देना होता है। ‘रक्षाबंधन’ का वास्तविक अर्थ होता है ‘रक्षा का बंधन’। रक्षा बन्धन के दिन भद्रा काल दोपहर 01:30 तक रहेगा, इसके बाद बहने अपने भाइयों को दिन भर राखी बाँध सकती हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार,रक्षाबंधन को प्रतिवर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता हैं; इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह बहनों और भाइयों के प्रेम का पर्व है। देश के कुछ हिस्सों में रक्षाबंधन को राखी के नाम से भी पुकारा जाता है। यह हिन्दुओं के सबसे बड़े त्यौहार में से एक है। इस वर्ष रक्षाबंधन 19 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा।

हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का संबंध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। 

(यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र -)-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेनत्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)”

 रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा, क्या है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त,

19 अगस्त सोमवार को दोपहर 01:32 से रात्रि 08:10 तक राखी बाँधी जा सकती है। 

सावन में इस साल रक्षाबंधन बहुत खास माना जा रहा है, हालांकि राखी वाले दिन भद्रा का साया भी रहेगा। ऐसे में रक्षाबंधन पर राखी कब बांधे जानें श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे से सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई से हो चुकी है, जो कि 19 अगस्त तक चलेगा। 

जिस दिन सावन महीना खत्म होगा, उसी दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा।

इस बार “रक्षाबंधन और सावन का आखिरी सोमवार एक ही दिन पड़ रहा है” ऐसे में भाई-बहनों को शिव जी का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होगा, हालांकि रक्षाबंधन पर भद्रा का साया भी रहेगा। ऐसे में अभी से जान लें रक्षाबंधन पर राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, भद्रा की समाप्ति दोपहर 01:30 पर हो जायेगी।

रक्षाबंधन पर कई दुर्लभ संयोग

इस बार राखी पर सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। रक्षाबंधन पर तीन शुभ योग भी बन रहे हैं। शोभन योग पूरे दिन रहेगा, वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5:53 से 8:10 तक रहेगा और रवि योग भी सुबह 5:53 से 8:10 तक रहेगा। सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र की साक्षी भी इस शुभ दिन को खास बना रही है।

“रक्षाबंधन पर भद्रा का साया”

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

रक्षाबन्धन पर्व श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को भद्रा रहित तीन मुहूर्त या उससे अधिक व्यापिनी पूर्णिमा को अपराह्न काल व प्रदोष काल में मनाया जाता है।

यथा पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहुर्ताधिकोदय

व्यापिन्यामपराले प्रदोषे वा कार्यम्

19 अगस्त रक्षाबँधन के दिन दोपहर 01:30 बजे भद्रा समाप्त हो रहा है।* चर-लाभ-अमृत-चर – दोपहर 02:07 से रात्रि 08:20 तक रहेगा।

दोपहर 01:48 से अपराह्न 04:22 तक राखी बांधने का विशेष मुहूर्त रहेगा।

प्रदोष काल-सायं 06:57 से रात्रि 09:10 के बीच भी राखी बांधने का शुभ मुहूर्त बन रहा है।                                           

रक्षाबंधन की पूजा विधि 

रक्षाबंधन पर सर्वप्रथम प्रातःकाल भाई-बहन स्नान करने के पश्चात ईश्वर की उपासना करते हैं। इसके उपरांत बहनों द्वारा रोली, अक्षत, कुमकुम और दीपक जलाकर पूजा की थाली सजायी जाती हैं। इस थाली में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर पूजा करते हैं। अब बहनें भाइयों के माथे पर कुमकुम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं। इसके पश्चात बहने अपने भाई के दाएं हाथ की कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और भाई को मिठाई खिलाती हैं। 

भाई राखी बंधवाने के बाद अपनी बहन को रक्षा का वचन और भेंट देते है।इसके विपरीत, बहनें राखी बांधते समय अपने भाई की लम्बी आयु एवं सुख-शांति से पूर्ण जीवन की कामना करती है।               

रक्षाबंधन का महत्व 

 राखी या रक्षाबंधन हिन्दुओं का सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध पर्व है जिसका इंतजार सभी बहनों और भाइयों द्वारा वर्षभर उत्सुकता से किया जाता है। रक्षाबंधन के दिन सभी बहनें अपने भाई की सुख-समृद्धि एवं लंबी आयु के लिए कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांधती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनकी रक्षा का वचन देते है।

यह एक ऐसा लोकप्रिय त्यौहार है जिसका इंतजार बहनें बहुत ही बेसब्री से करती है क्योंकि रक्षाबंधन भाई और बहन के प्रेम को गहरा करता है। रक्षाबंधन भारतीय परम्पराओं का एक ऐसा पर्व है, जो भाई-बहन के स्नेह के साथ-साथ प्रत्येक सामाजिक संबंधों को मजबूती प्रदान करता है। इसी वजह से इस त्यौहार का भाई-बहन को आपस में जोडने के साथ-साथ अपना विशेष सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व भी है। 

रक्षा बंधन पर शुभ मुहूर्त का महत्व

रक्षाबंधन पर किये जाने वाले सभी धार्मिक अनुष्ठानों को सदैव तिथि पर शुभ मुहूर्त के दौरान करना चाहिए। इस पर्व से संबंधित रीति-रिवाजों को सम्पन्न करने के लिए अपरान्ह काल को सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है। इस दिन भद्राकाल से सख्ती से बचा जाना चाहिए क्योंकि यह अशुभ समय होता है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करना उचित नहीं माना जाता है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान एवं नए कार्य को करने से पूर्व शुभ मुहूर्त और चोगडिया मुहूर्त को देख लेना चाहिए। 

रक्षाबंधन के दौरान इन नियमों का रखें विशेष ख्याल 

पूर्णिमा तिथि के दौरान अपरान्ह काल में भद्रा लग गई है तो रक्षाबंधन मनाने की मनाही होती है। इसी प्रकार, यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो इस पर्व को विधिपूर्वक अगले दिन के अपरान्ह काल में मनाना चाहिए।

पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में नहीं हो, तो रक्षाबंधन को पहले दिन भद्रा लगने के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मनाया जा सकता हैं। 

रक्षाबंधन से जुड़ीं कथाएँ

हमारे धार्मिक ग्रंथों में रक्षाबंधन से जुड़ीं अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है: 

श्री कृष्ण और द्रौपदी

महाभारत के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान श्री कृष्ण के हाथ पर चोट लग गई थी, तब द्रौपदी ने अपना पल्ला फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ पर बांधा था। उसी वक़्त भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को जीवनभर रक्षा करने का वचन दिया था, उसी समय से ही पवित्र बंधन के रूप में राखी का पर्व मनाया जाने लगा। 

देवी लक्ष्मी जी एवं राजा बली

भगवान विष्णु के परम भक्त थे राजा बली जिन्होंने भगवान विष्णु जी से सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए भगवान विष्णु ने द्वारपाल के रूप में रहकर उनकी प्रार्थना पूरी की। देवी लक्ष्मी को बैकुंठ में भगवान विष्णु नहीं मिल रहे थे नारद जी ने बताया की भगवन्न राजा बली के यहाँ द्वारपाल हैं। राजा बली को दयालु राजाओं में से एक माना जाता था देवी लक्ष्मी जी राजा बली के नगर में पधारीं , राजा ने देवी का स्वागत किया, देवी लक्ष्मी जी की कृपा से राजा बली के राज्य ने अपार सफलता प्राप्त की। 

श्रावण पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी जी ने राजा बली की सुरक्षा हेतु उनकी कलाई पर एक पवित्र धागा बांध दिया। उसके पश्चात राजा बली ने उनसे पूछा कि वह उपहार में क्या चाहती है, जिस पर देवी लक्ष्मी ने द्वारपाल के रुप में खड़े भगवान विष्णु जी की तरफ इशारा किया। इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु जी ने अपनी वास्तविक पहचान प्रकट की। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी से बली ने अपने बैकुंठ धाम पर वापस जाने का अनुरोध किया। लेकिन, बली की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने बली के राज्य में 4 महीने रहने का वचन दिया।

धार्मिक मान्यता है कि भद्रा काल के दौरान राखी बांधना शुभ नहीं होता है।* पौराणिक कथा के अनुसार लंकापति रावण को उसकी बहन ने भद्रा काल में राखी बांधी थी और उसी साल प्रभु राम के हाथों रावण का वध हुआ था। इस कारण से भद्रा काल में कभी भी राखी नहीं बांधी जाती है।

रक्षाबन्धन का त्यौहार श्रावण माह की  पूर्णिमा को मनाया जाता है।श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी भी कहते हैं। रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।                    

सावन पूर्णिमा होगी खास

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वार, तिथि, योग, नक्षत्र व करण का अपना विशेष प्रभाव होता है। पंचांग के इन्हीं पांच अंगों से किसी भी त्यौहार की श्रेष्ठ स्थित तथा पर्व को खास बनाने वाले योगों का निर्धारण होता है। इस बार श्रावणी पूर्णिमा 19 अगस्त को सोमवार के दिन श्रवण उपरांत धनिष्ठा नक्षत्र तथा शोभन योग की साक्षी में आ रही है। सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र के होने से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। इस साल भी रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा।

रक्षाबंधन का महत्व

हिंदू पंचांग के मुताबिक रक्षाबंधन सावन महीने की पूर्णिमा को हर साल मनाया जाता है।भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का यह त्यौहार पूरे भारत वर्ष में उत्साह के साथ मनाया जाता है और बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर भाई की लंबी उम्र की कामना करती है, वहीं भाई भी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है।

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक रक्षाबंधन का पर्व भद्रा काल में नहीं मनाना चाहिए।

News Desk

Editor in chief, डॉ मिर्जा कवर्धा

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