कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

शिक्षा विभाग में उच्चाधिकारियों की दोहरी नीति.. पढ़वाना छोड़ शिक्षकों को प्रभारी अधिकारी बनाये जाने पर हाई कोर्ट जताई नाराजगी, मांगा शपथ पत्र.. एक तरफ शालाओं में शिक्षकों की कमी के कारण युक्तियुक्त करण की प्रक्रिया अपनाई जा रही दूसरी तरफ उन्हें स्कूलों में पढ़वाना छोड़ प्रशासनिक पदों में प्रभारी बनाया जा रहा है जिससे विभाग की कथनी और करनी में अंतर साफ दिखाई देता है।

Editor In Chief 

डॉ मिर्जा कवर्धा 

स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा व्याख्याताओं को शालाओं से निकाल कर विभाग के प्रशासनिक पदों पर प्रभारी बनाये जाने पर माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर ने शिक्षा विभाग से शपथ पत्र मांगा है दरअसल विकास खण्ड कवर्धा के इंदौरी में पदस्थ व्याख्याता दयाल सिंह ने संजय जायसवाल मूल पद व्याख्याता एल.बी. को प्रभारी बीईओ कवर्धा बनाये जाने के विरुद्ध शासन और संजय जायसवाल के विरुद्ध याचिका क्र डब्लू पी एस 8178/2022 दायर की गई थी जिसमे याचिकाकर्ता के द्वारा जूनियर को प्रभारी बीईओ कवर्धा बनाये जाने के संबंध में शिकायत किया गया था, जिस पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा संबंधित को शासन स्तर पर अभ्यावेदन देने एवम स्कूल शिक्षा विभाग को उक्त अभ्यावेदन को 04 सप्ताह के भीतर निराकरण करने हेतु निर्देशित किया गया था। जिस पर विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर याचिकाकर्ता दयाल सिंह व्याख्याता शा.हा.से. स्कूल इंदौरी वि.ख. कवर्धा जिला कबीरधाम द्वारा क्षुब्ध होकर अवमानना याचिका क्र. 779/2023 दायर किया गया। उक्त आवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय हाईकोर्ट ने यह माना कि स्कूल शिक्षा विभाग के भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2019 के तहत व्याख्याता दयाल सिंह एवं वर्तमान में प्रभारी बीईओ संजय जायसवाल व्याख्याता एल.बी. दोनों प्रभारी बीईओ हेतु अपात्र हैं एवम व्याख्याता जो शैक्षणिक कार्यों के लिए नियुक्त हुए हैं उन्हे प्रभारी बीईओ बनाकर विभाग द्वारा मैनपावर का गलत उपयोग किया जा रहा है | माननीय न्यायालय द्वारा छ.ग. में गिरते हुए शिक्षा के स्तर पर नाराजगी जाहिर किया गया साथ ही साथ विभाग को शपथ पत्र प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया कि व्याख्याताओं को प्रभारी बीईओ बनाए जाने पर जो विसंगति या दुष्परिणाम हुए है उन्हें दूर करने हेतु विभाग द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे है एवम साथ मे यह भी बताएं कि वर्तमान में ऐसे कितने प्राचार्य एवं सहायक विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी है जिन्होंने 05 साल पूर्ण कर चुके है जिसे विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी का प्रभार दिया जा सकता हैं।

ज्ञात हो कि समय-समय पर माननीय उच्च न्यायालय छ.ग. ने अपने निर्णयों में भी व्याख्याता को वि.ख. शिक्षा अधिकारी हेतु अयोग्य घोषित किया है |

1. डी.एन. मिश्र विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 6869/2019

2. फूलसाय मराठी विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 7279/2022

3. बी.एस.बजारे विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 7123/2022

4. मुकेश मिश्रा विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 5176/2021

5. महेन्द्र घर दिवान विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 4029/2021

6. अमर सिंह घृतलहरे विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 7207/2019

7. दयाल सिंह विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 2280/2021

8. जी.पी बनर्जी विरुद्ध छ.ग. शासन केस नं. wps 7165/2022 

उक्त याचिकाओं में पारित निर्णयों के परिपालन में विभाग द्वारा कई व्याख्याता / प्रधानपाठक को विख शिक्षा अधिकारी के प्रभार से हटाते हुए शाला में पदस्थ भी किया है | परन्तु अभी भी 40 से अधिक स्थानों पर व्याख्याता और प्रधानपाठकों को बीईओ, सहायक संचालक और एबीईओ का प्रभार दिया गया है

ईसीप्रकार माननीय सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली (भारत) में विनोद यादव विरुद्ध छ.ग. शासन प्रकरण में छ.ग. शासन द्वारा शपथ पत्र दिया गया है जिसमे शासन ने स्कूल शिक्षा विभाग के पदों को दो अलग अलग कैडर शैक्षणिक और प्रशासनिक बनाये जाने का उल्लेख किया है साथ ही यह कहा है कि एक कैडर के लोग दूसरे कैडर में नहीं जा पाएंगे एवम व्याख्याता को ए.बी.ई.ओ. पद हेतु अयोग्य माना है फिर भी प्राचार्य और एबीईओ के रहते लगातार नियम विरुद्ध व्याख्याताओं को प्रभारी डीईओ, सहायक संचालक, बीईओ बनाया जा रहा है|

 

 

News Desk

Editor in chief, डॉ मिर्जा कवर्धा

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