कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

शिवमहापुराण कथा का पूर्णाहुति व शोभा यात्रा के साथ समापन 

Editor In Chief 

डॉ मिर्जा कवर्धा 

कवर्धा, । कवर्धा नगर के बहादुर गंज वार्ड नं 21 में 5 नवम्बर से आयोजित शिवपुराण कथा का समापन 13 नवम्बर 2024 को पूर्णाहुति के साथ हुआ। शिवपुराण के कथा वाचक पूज्य पंडित श्री धनंजय दुबे महाराज जी के सानिध्य में संपन्न किया गया है जिसमें बड़ी संख्या में नगर एवम वार्ड वासियों की माताएं बहनें व पुरुष शामिल हुए।

इस कथा के मुख्य आयोजक उगता सूरज महिला समूह व समस्त वार्ड वासी रहे।

कथा वाचक पंडित धनंजय दुबे ने अंतिम दिन की कथा सार से सुनाते हुए भक्तों से कहा कि शिव के महात्मय से ओत-प्रोत यह पुराण शिव महापुराण के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव पापों का नाश करने वाले देव हैं तथा बड़े सरल स्वभाव के हैं। इनका एक नाम भोला भी है। अपने नाम के अनुसार ही बड़े भोले-भाले एवं शीघ्र ही प्रसन्ना होकर भक्तों को मनवाँछित फल देने वाले हैं। कथावाचक पंडित श्री दुबे जी ने श्रद्धालुओं से कहा कि धार्मिक आयोजनों में भावनाएं होनी जरूरी है। सगुण, साकार सूर्य, चंद्रमा, जल, पृथ्वी, वायु यह एक शिव पुराण का स्वरूप हैं। उन्होंने कहा कि अपने चारों ओर सदैव वातावरण शुद्ध रखें। जहां स्वच्छता और शांति होती है, वहां देवताओं का वास होता है। जल,वायु, पेड़ एक चेतन से लेकर जड़ चेतन में आकर एक-दूसरे के सहायक बनते हैं। जहां अधार्मिकता बढ़ जाती है और कर्म को भूल जाते हैं, वहां शिव और शक्ति दोनों नहीं होते।शिव की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान शिव ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों से मुक्त कर सकते हैं, शिव की भक्ति से सुख व समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस अलौकिक शिव महापुराण की कथा सुनना अर्थात पाप से विमुक्त होना है। आयोजित शिव महापुराण में कथा को सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुचे। कथा सार सुनकर श्रोता झूम उठे।पूर्णाहुति के पूर्व शिवपुराण के कथा वाचक पंडित श्री धनंजय दुबे ने शिव महापुराण कथा का सार बताया। उन्होंने कहा कि अपने अभिमान में चूर होकर दक्ष प्रजापति ने कनखल में यज्ञ किया। इसमें सभी देवों व ऋषि मुनियों को आमंत्रित कर उन्होंने भगवान शिव की उपेक्षा की। इसकी सूचना सती को अपनी सहेलियों से मिली, इसके बाद शिव के समझाने के बाद भी वे यज्ञ में पहुंच गई। वहां देखा कि भगवान शिव का अपमान हो रहा है। पूछने पर राजा दक्ष ने सती का भी अपमान किया। नाराज सती ने यज्ञ कुंड में ही अपना शरीर त्याग दिया। यह जानकारी जब शिव को हुई,तब वे रौद्र रूप में आ गए और उन्होंने अपने गणों की मदद से कनखल को तबाह कर दिया। कथा के इस प्रसंग को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।

News Desk

Editor in chief, डॉ मिर्जा कवर्धा

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