कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

भावना ने दी मानवता की मिशाल..19 आदिवासी मृतकों के परिवार के प्रति खोला सेवा का पिटारा.. कुछ लोगों को यह सेवा पच नहीं रहा है.. और दे रहे हैं अनाप-शनाप बयान इन मृतकों के परिवार के लिए जिन्होंने 5 रूपए भी खर्च नहीं किया वह ज्ञान बांटने में लगे हैं ? परहित सरिस धर्म नहिं भाई,परपीडा सम नही अधमाई ,, तुलसीदास के इस रचना में खरा उतर रही है.. भावना बोहरा

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डॉ मिर्जा कवर्धा 

पंडरिया -: सेमरहा निवासी आदिवासी परिवार तेन्दूपत्ता तोड़कर लौटते समय दुर्घटना की शिकार हुई और खाई में अनियंत्रित पिकअप गिर गया जिससे पिकअप में सवार 36 में से 19 लोग घटना स्थल में दम तोड दिए, कुछ इलाज से स्वस्थ हो गये, कुछ ने गाड़ी से कुद कर जान बचा लिए ,यह घटना ह्रदय विदारक घटना है इस घटना ने पूरे मानव समाज को हिला कर रख दिया।यह घटना क्षेत्र में पहली बार हुई इसलिए इस जैसे घटना से इन्सान क्या करें क्या ना करें विचार करने में असहजता हो गये।

एक तरह से “दुखों का पहाड़ टुटना,, इसी तरह के घटना को समझा जा सकता है! इस तरह के गंभीर घटना में” तिनके का सहारा,, काफी होता है पर तिनका ही नहीं पूरी की पूरी दुखों को अपने सर में कोई और लें लें तो आप कल्पना करें उस दुखी परिवार के लिए तो वैसे ही हुआ जैसे भगवान ने जैसे उनके लिए कोई दूत भेज दिया हो उनसे बिछुडे सदस्य की भरपाई हो गई है कुछ इसी तरह ही माना जा सकता है अब इस बात को कहने वाले सुनने वाले देखने वाले अपने अपने विचार के अनुकूल वक्तब दें सकते हैं पर यह अनुभुति तो वही ज्यादा समझ सकते हैं जिनके घर यह घटना घटी और उन्हें तिनके का सहयोग करने वाले सहयोगी उन्हें मिलें और सहयोग बिना स्वार्थ के करने वाले सहयोगी ही इस परम अनुभव का अनुभुति कर पायेगा ।

आप को बतादे ग्राम सेमरहा कुकदुर की घटना अकल्पनीय है! इस घटना दिन से अंतिम दशगात्र तक राजनैतिक नेता उस गांव का ख्याल रखें और मेल मिलाप चलते रहा है पर बडी बात यह है! दसगात्र के बाद यह गांव व पिडित परिवार को लोग धीरे-धीरे भुल जायेंगे कोई मिलने नहीं आयेगा ,सिर्फ एक याद रह जायेगा पर वह ब्यक्ति जो उस पिडित परिवार के बच्चों को संवारने पालक बन कर उनके उज्जवल भविष्य तैयार करने में लग जायें इसे क्या कहेंगे ? मुझे लगता है यही है मानवीय भाव की असल कार्य और हम कह सकते हैं “मानवता की मिशाल है,, तुलसी दास जी की यह रचना याद आति है “परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई,, जबकि राजनैतिक चरित्र अब तक उद्देश्य ब्याय करती है बिना उद्देश्य ब्यय करने वाली वो है भावना की भावना जो सेमरहा गांव के घटना पर उभर कर आई और पुरे मानव समाज के लिए यह एक मानवता की मिशाल बन कर सामने दिखाई दें रही है ।

पंडरिया क्षेत्र की विधायक भावना बोहरा यह सच है राजनीतिक सदस्य हैं पर यह सेमरहा गांव के घटना में राजनीति से परे होकर घटना दिन से अब तक जो सेवा कार्य किया जिसमे घटना समय पिडितो को मदद करते हुए इलाज का तत्काल व्यवस्था कर मृतकों के लिए पोस्टमार्टम तुरंत कराना घर तक पहुंचाने का व्यवस्था अंतिम संस्कार का प्रबंध पिडित परिवार को तत्काल आर्थिक सहयोग जिसमें गृह मंत्री विजय शर्मा द्वारा संवेदनशील भाव से सहयोग पर उतर कर मृतकों को 5-5 लाख रुपया 50-50 हजार घायलों को इसके अतिरिक्त 6/4 के तहत 4_4 लाख रुपया का आर्थिक सहयोग अलग से करने का घोषणा कर और भी जरूरी सहयोग कर किसी बात की कमी नहीं होने देना और अस्थी विसर्जन का पूरा प्रबंधन करना और पिडित परिवार के बच्चों को गोद लेकर पूरा परवरिश का जिम्मा उठा लेना और अब दशगात्र का पुरा जिम्मेदारी उठा कर उम्मीद से अधिक उपस्थिति को भोजन कराना यह पुरा लगातार परिवार के एक मुखिया का जिम्मेदारी निभाते दिखाई देना

अब तक किसी और जगह देखने को शायद किसी को नहीं मिला होगा पर यह सब कर दिखाई पंडरिया के विधायक भावना बोहरा ने आप कल्पना कर सकते हैं यें सब विधायक नहीं भी करती तो उनके विधायकी पर कोई आंच नहीं आने वाली है यह हस्ती कोई आम हस्ती भी नहीं है पर भी इन सब बातों को साइड में रख कर भावना की मन की भावना सेवा करना ही प्रमुख हैं जो समय समय पर उभर ही आता है जो ग्राम सेमरहा के 19 आदिवासी मृतकों के परिवार के प्रति एक बार और उभर कर दिखाई दिया है इसे ही कहते है।

परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई’ तुलसीदास जी की रचना का जीता जागता उदाहरण भावना है हम कह सकते हैं मानवता की मिशाल है भावना बोहरा।

समाज सेविका भावना बोहरा के इस सेवा से कुछ लोगों को पीड़ा हो रही है लेकिन जनता बेहतर समझता है कि कौन जनता के साथ है और कौन जनता के साथ राजनीति कर रही है 5 रूपए भी खर्च नही करने वाले कुछ ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जो आरोप लगाने में माहिर है जनता सब समझती साहब यह पब्लिक है सब समझती है।

News Desk

Editor in chief, डॉ मिर्जा कवर्धा

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