कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

66वांउर्स पाक लूतरा शरीफ़.. शंहशाहे छत्तीसगढ़,आरिफे बिल्लाह, मज़जूबे क़ामिल,परतवें मूसा, हज़रत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह अलैहिररहमा की हयात पर एक नज़र…

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डॉ मिर्जा कवर्धा 

हजरत सैय्यद इंसान अली शाह की विलादत 1884 ईस्वी में हुई।आपके वालिद सैय्यद मर्दान अली और वालिदा बेगम बी (दादी मां)एक इबादत गुजारों में शामिल थे।आपके ननिहाल से आपकी वालिदा को लूतरा शरीफ़ का इलाका मिला हुआ था।

आपकी तालीमी तरबियत मां की गोद से ही शुरू हुई थी। बड़े हुए तो मचखंडा के गौंटिया हज़रत अजीमुद्दीन साहब से हुई।बाबा साहब जब मचखंडा में उस्ताज़ से पढ़ रहे थे।तो अचानक पूरी फिज़ा खूश्बू से भर जाती और बाबा साहब खुद ब खुद अपने आप पढ़ते जाते थे। अचानक रौशनी चमकती और गायब हो जाती इससेे मालूम होता है कि पर्दे के पीछे से खुदाई ताक़त निगरानी कर रही थी।

बाबा इंसान अली की शादी मोहियुददीन की साहबजादी”उम्मीद बी” से हुआ था।जो खम्हरिया के गौंटिया खानदान था।आपकी एक बेटी पैदा हुई थी।जो बचपन में ही इंतकाल कर ग‌ई।और ज्यादा वक्त भी नहीं गुजरा था कि आपकी ज़ौजा मोहतरमा उम्मीद बी का भी इंतकाल हो गया।बाबा साहब ने फिर दूसरी शादी नहीं की।

आपके इबादतों का हाल अलग ही था कभी बीच तालाबों में कभी मस्जिद में।कभी जंगल में तो कभी पहाड़ों पर।वजाइफ में लगे रहते। ख़ुदा के नूर की तजल्ली बरसने लगीं और आपसे परतवें मूसा की झलकियां आने लगीं।नूरे ख़ुदा की तजल्ली से दिलों दिमाग पर अजीब कैफियत तारी होने लगी।आप अपने होशोहवास खो बैठे। लोगों ने आपकों मजनू समझना शुरू कर दिया था।उस वक्त नागपुर महाराष्ट्र में बाबा ताजुद्दीन के मज्जूबियत का डंका बज रहा था।वो भी परतवे मूसा थे। उनकेे पास बाबा इंसान अली को ले जाया गया। उन्होंने देखते ही पहचान लिया।कि ये भी तो मेरी तरह उसी नूर को देखते ही अपने आपा खो चुके हैं।बाबा ताजुद्दीन ने कहा इन्हें छोड़ दो ये दुनिया ए विलायत के अजीम ताजदार है।और अपने गले का हार बाबा इंसान अली शाह के गले में डाल दिए।लोग उन्हें वापस लूतरा शरीफ़ लें आए।।

धीरे-धीरे विलायत का राज़ खुलना था। करामतें ज़ाहिर होना था मगर कैसे ।तो एक रेलवे ड्राईवर नागपुर जाकर अपनी बेटी की बीमारी का हाल बाबा ताजुद्दीन को बताता है बाबा ताजुद्दीन ने कहा इसे लूतरा ले जाओ।बाबा ताजुद्दीन ने ख्वाब में रास्ता बता दिया और बाबा इंसान अली का जलवा भी दिखा दिया।उसके लूतरा आने के बाद राज़ फाश हो गया।बाबा इंसान अली के कदमों में लिपट गया बाबा ने धक्का दिया,उसे मारा भगाया मगर वो कदमों को नहीं छोड़ रहा था। आखिर रात की तन्हाई में बाबा इंसान अली शाह ने कहा जा तेरा काम हो गया मगर इसे राज़ रखना और ताजूल औलिया से कहना मुझ पर इतना बोझ ना डालें।

———दौराने तकरीर खम्हरिया से मोहसिने मिल्लत मौलाना हामीद अली फारूकी बाबा इंसान अली शाह के साथ लूतरा शरीफ़ आ ग‌ए रात हुजरे में ही कयाम था। फारूकी साहब फरमाते हैं कि तहज्जुद पढ़कर जैसे ही मैंने सलाम फेरा तो देखा बाबा साहब जिक्र में मशगूल थे और उनकेे सीने में नूर चमक रहा था।और ये नूर गुंबदे ख़ज़रा तक चमक रहा था।ऐसा लग रहा था कि हुजूर सल्ल्लाहो अलैहे वसल्लम और गौसे आज़म की जल्वागरी हो चुकी है पूरा हुजरा खुशबू से भरा हुआ था। जब बाबा इंसान अली इबादत से फारिग हुए तो मौलाना हामीद अली फारूकी से फ़रमाया कि””आप का देखत ह ये हर तो ओ जगह ए जिहां क़यामत तक आदमी मन आवत रयहीं अव फ़ैज़ पावत रयहीं।””

धीरे धीरे करामत जाहिर होने लगीं लोगों की भीड़ होने लगीं। लोगों को शिफा मिलने लगी।बाबा के विसाल का वक्त भी आ गया। 16रबिउस्सानी (11वीं शरीफ़ का महीना था)इस दुनिया को आपने अलविदा कह दिया और अपने मालिकी हकीकी से जा मिले।

हाजी मो. सलीम हिंगोरा, कवर्धा

News Desk

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