कबीरधाम (कवर्धा)छत्तीसगढ़

हरतालिका तीज 06 सितंबर 2024 तिथि, शुभ मुहूर्त और व्रत अनुष्ठान.. “शिव ही शक्ति शक्ति ही शिव-शक्ति को प्राप्त करने का व्रत हरतालिका :-श्री शंकराचार्य शिष्य ,पण्डित देव दत्त दुबे, कुँवारी कन्यायें इच्छित वर की प्राप्ति के लिए एवँ विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायुत्व के लिए रहतीं हैं तीजा का व्रत

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डॉ मिर्जा कवर्धा 

हरतालिका तीज भगवान शिव और देवी पार्वती के वैवाहिक बंधन का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। हरतालिका तीज पर लड़कियां और विवाहित महिलाएं दोनों ही व्रत रखती हैं और हरतालिका तीज मनाती हैं,पंचांग या हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। महिलाएं इस त्यौहार को आनंदमय और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए अनुष्ठानों के साथ मनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा था। हरतालिका तीज के अलावा सावन और भाद्रपद के महीने में दो और तीज मनाई जाती है, हरियाली तीज और कजरी तीज।  

हरतालिका – तिथी तीज शुक्रवार 6 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी सुहागिनें एवँ कुँवारी कन्यायें रात्रि भर जागरण कर अहोरात्र पूजन कर सकतीं हैं जानें पूजा का शुभ मुहूर्त शंकराचार्य जी के शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी से 06 सितंबर दिन शुक्रवार को दोपहर 3:00 बजे तक तृतीया तिथि है और प्रातः 9:24 तक हस्त नक्षत्र रहेगा, वैसे तो हस्त नक्षत्र रात में रहना चाहिए लेकिन इस बार सुबह 9:00 बजकर 24 मिनट तक ही हस्त नक्षत्र है फिर भी इसी दिन तीजा का व्रत रहना एवँ रात्रि में पूजन करना श्रेष्ठ होगा ।  

 हरतालिका तीज की पौराणिक कथा

 हरतालिका शब्द दो अलग-अलग शब्दों यानी ‘हरत’ और ‘आलिका’ से बना है। ‘हरत’ का अर्थ है अपहरण और ‘आलिका’ का अर्थ है एक महिला मित्र या सखी। नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। देवी पार्वती बहुत छोटी उम्र से ही भगवान शिव की पूजा करती थीं। भगवान विष्णु देवी पार्वती के दृढ़ संकल्प को देखकर प्रभावित हुए। उन्होंने नारद मुनि को पार्वती के पिता से विवाह का प्रस्ताव देने के लिए भेजा। हालाँकि, देवी पार्वती के मन में केवल भगवान शिव थे। माता पार्वती जी ने अपनी सहेली से मदद मांगी, जिसने उनका अपहरण कर लिया और उन्हे एक जंगल में छिपा दिया, जहाँ माता पार्वती जी ने ध्यान किया और भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव देवी पार्वती से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।  

राजा हिमांचल ने हिमालय उत्तराखण्ड के त्रिमुखी में किया था माता पार्वती जी का विवाह

श्री शंकराचार्य जी के शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिमांचल भी माता पार्वती जी का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे, इस विचार से माता सुनयना भी सहमत थी लेकिन माता पार्वती जी मन ही मन भगवान शंकर जी को अपना पति मान ली थीं, ऐसे में नारद मुनि ने राजा हिमांचल को माता पार्वती जी के पूर्व जन्म की कथा बतलाते हुए समझाया कि माता पार्वती जी पूर्व जन्म में भी भगवान शंकर की पत्नी थीं। तब राजा हिमांचल ने माता पार्वती जी का विवाह हिमालय में किया था। पार्वती जी की माता जी ने भी उन्हें शिव जी के साथ विवाह करने के लिए मना किया, लेकिन पार्वती जी ने अपने निश्चय को बदलने से इनकार कर दिया। उन्होंने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कई व्रत और उपवास किये, जिनमें से एक व्रत है “हरतालिका तीज”।

पार्वती जी ने शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने कई वर्षों तक जंगल में रहते हुए कठोर तपस्या की और शिव जी की आराधना की।

इस व्रत में, पार्वती जी ने अन्न और जल का त्याग किया , अनेकों दिनों तक निराहार रहीं इस पर भी शिव जी प्रसन्न नहीं हुये, तब माता पार्वती जी सब कुछ त्याग कर सिर्फ़ वायु पर ही निर्भर होकर व्रत करतीं रही और लगातार शिव जी का ध्यान किया। उन्होंने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के फूल, फल, और अन्य चीजें अर्पित कीं। अंत में, शिव जी, माता पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार, पार्वती जी की तपस्या और समर्पण की शक्ति से उन्हें अपने पति के रूप में शिव जी प्राप्त हुए। इसके अलावा, हरतालिका तीज की कथा में एक और पहलू भी है, जिसमें पार्वती जी की सहेली ने उन्हें शिव जी के साथ विवाह करने में मदद की। हालांकि पार्वती जी की सहेली ने भी उन्हें शिव जी के साथ विवाह करने के लिए मना किया था, लेकिन पार्वती जी ने अपने निश्चय को बदलने से इनकार कर दिया। तब पार्वती जी की सहेली ने उन्हें शिव जी के साथ विवाह करने में मदद की और उन्हें शिव जी के साथ विवाह करने के लिए प्रेरित किया।

माता पार्वती जी की शादी शिव जी के साथ हिमालय की गोद में स्थित एक सुंदर स्थान पर हुई थी। यह स्थान है “त्रिमुखी” या “त्रिमुखिया” जो कि हिमालय की तराई में स्थित है। त्रिमुखी एक पवित्र स्थल है जहाँ पार्वती जी और शिव जी का विवाह हुआ था। यह स्थान पार्वती जी के पिता हिमालय का घर था, जहां पार्वती जी ने शिव जी को अपने पति के रूप में स्वीकार किया था।

त्रिमुखी के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान तीन पहाड़ियों के बीच में स्थित है, जो कि पार्वती जी के तीन रूपों का प्रतीक है – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती

हरतालिका तीज व्रत का धार्मिक महत्व

हिंदू परंपराओं के अनुसार, हरतालिका तीज को श्रद्धा युक्त व्रती महिलाओं की इच्छाओं की पूर्ति और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सबसे पवित्र और शुभ व्रत माना जाता है। 

श्री शंकराचार्य जी के शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी बताते हैं हरतालिका तीज पर कुंवारी लड़कियां इच्छित वर प्राप्ति की कामना से और विवाहित महिलाएं पति के दीर्घायुत्व के लिए 24 घंटे का व्रत रखती हैं। ऐसा देखा गया है कि व्रत रखने वाली श्रद्धालु महिलाएँ इस पूरे त्यौहार के दौरान पानी या अनाज का सेवन नहीं करती हैं। महिलाएँ भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को भोर में अपना व्रत शुरू करती हैं और चतुर्थी को भोर में इसे समाप्त करती हैं। व्रत शुरू होते ही महिलाओं को एक व्रत लेना होता है जिसे जीवन भर निभाना होता है। व्रत के प्रति सचेत रहना चाहिए और लिए गए व्रत का पालन करना चाहिए। व्रत के दौरान सोलह श्रृंगार एक महत्वपूर्ण तत्व है। सिंदूर, मंगलसूत्र, बिंदी, बिछुआ, चूड़ियाँ आदि विवाहित महिलाओं के लिए आवश्यक हैं। महिलाएँ अपने लिए नए सौंदर्य प्रसाधन खरीदती हैं और साथ ही देवी पार्वती को भी अर्पित करती हैं। वे अपने पति और परिवार के अन्य सदस्यों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। महिलाएँ आमतौर पर लाल और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं। काले और नीले रंग से बचना चाहिए।  

हरतालिका तीज के लिए क्रम वार पूजन विधि

लड़कियों और महिलाओं दोनों को सुबह जल्दी स्नान करना चाहिए। महिलाएं लाल और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। हरतालिका व्रत और पूजा शुरू करने से पहले व्रत या संकल्प लेना चाहिए। घर के मंदिर में एक चबूतरे या वेदी पर भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की हस्तनिर्मित मूर्तियां रखें और उसके उपर ताजे फूलों से पाँच, सात लड़ की माला बनाकर उसका फुलेरा बनावें, आप हरतालिका पूजा के लिए पंडित जी को बुला सकते हैं जो शास्त्रीय परंपरा से हरतालिका का पूजन संपन्न करवा देंगे या स्वयं भी यह पूजा कर सकते हैं। अब सबसे पहले भगवान गणेश, भगवान शिव और देवी पार्वती की स्नान आदि करा कर पूजा करें। पूजा स्थल को केले के पत्तों और फूलों से सजाएँ और मूर्तियों के माथे पर कुमकुम लगाएँ। भगवान शिव और देवी पार्वती की षोडशोपचार पूजा शुरू करें , षोडशोपचार पूजा एक 16 चरणों वाली पूजा अनुष्ठान है जो आवाहनम से शुरू होती है और नीरांजनम पर समाप्त होती है। देवी पार्वती के लिए अंग पूजा शुरू करें। हरतालिका व्रत कथा का पाठ करें। व्रत कथा पूरी होने के बाद माता पार्वती को सुहाग का सामान अर्पित करें। व्रत रखने वाले को रात्रि जागरण करना चाहिए। व्रती महिलाएँ पूरी रात भजन-कीर्तन करती हैं। वे विवाहित महिला को दान-कर्म करते हैं और अगली सुबह उसे खाने-पीने की चीजें, श्रृंगार सामग्री, कपड़े, गहने, मिठाई, फल आदि देते हैं।  

हरतालिका व्रत का निष्कर्ष

हरतालिका तीज का त्यौहार पूरे देश में प्रेम और भक्ति के साथ मनाया जाता है। महिलाओं के दिलों में एक आस्था के साथ, यह त्यौहार अपने साथी के लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए पत्नी के सच्चे प्यार का प्रतीक है। यह हमारे जीवन में विश्वास, परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करता है।

इस प्रकार, हरतालिका तीज की कथा हमें यह सिखाती है कि यदि हम किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सच्चे मन से प्रयास करते हैं और अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए व्रत और उपवास करते हैं, तो हमें निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है।

 

News Desk

Editor in chief, डॉ मिर्जा कवर्धा

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