श्री शिवमहापुराण कथा : जीवन सांप सीढ़ी का खेल, अचानक ऊंचाई पर ले जाती है तो झटके से उतार भी देती है – शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज जी
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डॉ मिर्जा कवर्धा
सलधा/ बेमेतरा/ छत्तीशगढ़। परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ‘1008’ जी महाराज के मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने बताया पूज्यपाद शंकराचार्य जी मंगलवार प्रातः भगवान चंद्रमौलेश्वर का पूजार्चन पश्चात भक्तो को दिव्य दर्शन दिए एवं भक्तो को चरणोदक प्रसाद दिए ततपश्चात दूर दूर से आए भक्तो के धर्म सम्बंधित जिज्ञासाओं को दूर किए। सुबह 7 बजे दीक्षा दिया गया।
दोपहर 3 बजे जगद्गुरु शंकराचार्य शिवगंगा आश्रम से कथा स्थल पहुँचे जहा यजमान व सलधा वासियो ने सामुहिक रूप से पादुकापुजन किए। परम्परा अनुसार आचार्य राजेन्द्र शास्त्री द्वारा बिरुदावली का बखान किया गया ततपश्चात शंकराचार्य ने राम संकीर्तन करा पँचम दिवस के शिवमहापुराण कथा का श्रवण कराना प्रारम्भ किए।
श्री शिव महापुराण कथा के प्रारंभ में शंकराचार्य महाराज ने कहा कि कोई यह ना सोचे कि हम बहुत ऊंचाई पर पहुंच ही गए हैं, तो नीचे नहीं जा पाएंगे। इसी तरह से कोई यह भी ना सोचे कि हम बहुत नीचे पहुंच गए हैं।अब हम कैसे ऊपर उठ सकेंगे। क्यों क्योंकि यह जीवन सांप सीढ़ी का खेल है सीढ़ी पर पहुंच गए तो एक बार में जाने कितने ऊपर चढ़ जाते हैं। खेल में बच्चे खेलते हैं आप लोगों ने या तो स्वयं खेला होगा सांप सीढ़ी का खेल या फिर कम से कम बच्चों को ही खेलते देखा होगा, सीढ़ी पर पासा पहुंच गया अचानक बहुत ऊंचाई पर ले जाती है व साथ में एक झटके में बहुत ऊपर से बहुत नीचे भी ले आती है।
यह जो जिंदगी है समझ लीजिए सांप सीढ़ी का खेल है यह बात जरूर है कि आखिर वह कारण कौन सा, जिस कारण से पासा कभी सांप के मुंह में पहुंच जाता है और कभी सीढ़ी के पैरदान में पहुंच जाता। वह क्या कारण है उस कारण को जान ले तो सीढ़ी सीढ़ी पर ही हम पहुंचे सांप के मुंह में जाने का हमको मौका ही ना आए। यह जो शिव पुराण का पुराण है ऋषि महर्षियों की हमारी वाणी है। हमारे पूर्वजों के कृपा का यह प्रसाद है, क्योंकि उन्होंने अनुभव करके जान लिया कि वह कौन सा काम है, जिसके कारण पाशा किसी विशेष स्थान पर जा करके पहुंचता है और वह स्थान है। कोई नहीं भगवान की कृपा।
जिसके ऊपर भगवान की कृपा हो जाती उसका पाशा ऐसा पड़ता है, कि वह सीढ़ी पर ही जाएगा। अचानक वह पहुंच जाएगा। यह सांप सीढ़ी वाली कहानी हम आपको क्यों सुना रहे, क्योंकि शिवपुराण में यह कहानी हमारे सामने है जिसमें कुछ ऐसा होता दिख रहा है। वह कहानी क्या है वह कहानी यह है भगवान शिव का विवाह हो गया है। अब वह भगवती सती को विदा करके ले जाने वाले हैं। कहां जाएं यह सवाल है क्योंकि आप व हम इतने परेशान नहीं हो सकते। क्योंकि हमने छोटा सा ही नहीं कहीं ना कहीं अपना घर बना रखा है सन्यासी होने के बाद भी मठ बना हुआ है। चलो अगर कहीं लौटना ही पड़ा तो मठ में लौट चलेंगे।
आपका भी घर बना हुआ परमानेंट एड्रेस आप पहुंच जाएंगे लेकिन जरा भगवान शिव की जगह में खड़े हो कर के देख लीजिए आपको बड़ी मुश्किल हो जाएगी भगवान शिव का विवाह हो गया, विदाई हो रही है दहेज का सामान भी साथ में है और नववधू भी साथ में है लेकिन पता ही नहीं है जाना कहां हैं जबकि संसार को भोलेनाथ ने बनाया। अब पालकी को लेकर जाए तो जाए कहां? तब जाकर पता चला विवाह करने का मतलब क्या होता है इतना सरल नहीं है और उसी समय प्रस्ताव भगवान के सामने आ गया और प्रस्ताव करने वाला कौन था। बस उसी की कहानी सांप सीढ़ी की कहानी जैसे दिखाई दे रही है।
शिव पुराण में बताया गया है, काम्पिल्य नाम का एक नगर था और उस नगर में यज्ञदत्त नाम का एक बहुत ही कुलीन ब्राह्मण रहता था वेद संपन्न होकर के वेद में बताए गए धर्म का पालन करते हुए सत गृहस्थ। वह वहां पर रह रहा था। समय अनुसार सती की प्राप्ति भगवत के अनुसार हुई उसने अपने लड़के का नाम बड़ी कामना से गुण निधि रख दिया। इस नाम का मतलब होता है। गुणों का खजाना सोचा कि इसमें गुण ही गुण भर दूंगा लोग ऐसा ही सोचते हैं, लेकिन उनको पता नहीं है कि, जो जीव हमारे यहां उपजा है। वह कौन से संस्कार लेकर आया है आप संस्कार नही भर सकते हो संस्कार पहले से ही लेकर जन्मा है वह बच्चा।
जब बच्चा बड़ा होने लगा तो वेद भी पढ़ने लगा। विद्वान भी बना दिया लेकिन बच्चे के संस्कार अलग तरह के थे। पंडित जी समझ गए कि हमारा बेटा बहुत बड़ा गुणवान बन रहा है और बेटा उसको लत लग गई थी कुछ जुआरियों की तो वह जुआ खेलने चला जाता था। शुरू में तो किसी को पता नहीं चला कि वह गुण निधि जुआ खेल रहा है, लेकिन धीरे-धीरे मां को पता चला जब पिता पूछते बेटा कहां है तो मां बिचारी सोचती कि अगर सच बता दूंगी पिताजी बेटे को मारेंगे। मेरा बेटा पिट जाएगा इसलिए वह सच बताती नहीं थी कहती थी अमुक विद्वान के यहां अध्ययन के लिए गया, तो पिता बहुत प्रसन्न होते थे। देखो एक क्षण कभी समय हमारा बेटा व्यर्थ नहीं कमाता है हर समय पढ़ता रहता है कभी इस विद्वान के यहां कभी उस विद्वान के यहां।
जैसे मधुमक्खी अलगअलग फूलों के ऊपर जाकर के बैठती है और वहां से पर पराग निकाल लेती है। वैसे ही मेरा बेटा विद्वानों के यहां जाकर के नई विद्याओं का संग्रह कर रहा है प्रसन्न हो जाता है। अब सच्चाई कुछ अलग ही है पिता सोच सोच कर प्रसन्न हो रहा है और बेटा जुआरी बन गया। फिर दांव लगाने लगा दांव पर लगाने के लिए भी तो कुछ चाहिए आपके पास जब दांव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा तो घर में हाथ साफ करने लगा लेकिन घर में से कितना चुराए फिर दूसरी जगह भी चोरी करने लगा। गुणानिधि जैसे-जैसे बढ़ा हुआ पिता ने उसकी शादी करानी चाहिए और शादी भी करा दी लेकिन उसके बाद भी वह नहीं सुधरा।
एक दिन गुण निधि का पिता कहीं जा रहा था। तो उसे एक जुआरी मिला, जिसके हाथों में एक अंगूठी थी गुणानिधि के पिता ने जुआरी से पूछा यह अंगूठी कहां से मिली। जुआरी ने हंसते हुए कहा कि इतनी नजर अपने घर में रख ली होती तो आज बात ही अलग होती। यह तुम्हारे बेटे नहीं दांव पर लगाया था। तब उसे समझ में आया कि उसका बेटा जुआरी बन गया है अपनी पत्नी से उसने इस बात की जानकारी ली तो उसने कुछ नहीं कहा उसके बाद उसने बेटे से पूछा क्या तुम जुआ खेलते हो तो उसने कहा हां और यह बात मां को भी पता है मैंने कभी नहीं छुपाया।
गुणनिधि के पिता को इस बात का काफी बुरा लगा। उसने सोचा यदि किसी एक की बुराई के कारण पूरा कुल खतरे में हो तो उसे छोड़ देना चाहिए। ऐसा सोचते हुए उसने अपने बेटे का त्याग कर दिया।
कथा श्रवण करने मनोज शर्मा, ललित विश्वकर्मा, प्राणीस चौबे, डॉ रामावतार कश्यप, युवराज दुबे, प्रीतम चंदेल, संजीव तिवारी, माधव कश्यप, दीपक सिंह राजपूत, शोभनाथ पटेल, अंश पटेल, यशवर्द्धन वर्मा, अतुल देशलहरा, बंटी तिवारी, नीलू चंद्रवंशी, राजेश शुक्ला, ब्रह्मचारी परमात्मानंद, ब्रह्मचारी केशवानंद, ब्रह्मचारी हृदयानंद, ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानंद, मेघानन्द शास्त्री, धर्मेंद्र शास्त्री सहित हज़ारो की संख्या में उपस्थित दूर दूर से आए श्रोतागण ने कथा श्रवण किया।