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प्रदेश में बढ़ रही किडनी मरीजों की संख्या: 43 अर्जियाें में 38 किडनी ट्रांसप्लांट की, पेनकिलर-गैरजरूरी दवाइयां बड़ी वजह

प्रदेश में किडनी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसकी प्रमुख वजह डॉक्टरों की सलाह के बिना दर्द निवारक और गैर जरूरी दवाइयां लेने को माना जा रहा है। हाल ही में स्वास्थ्य विभाग के पास आर्गन ट्रांसप्लांट के लिए 43 आवेदन आए, जिनमें से 38 आवेदन किडनी ट्रांसप्लांट के हैं। रायपुर एम्स ने तो किडनी मरीजों की बढ़ती संख्या पर रिसर्च शुरू कर दिया है।

एम्स की नेफ्रोलॉजी विंग हर संभावित कारणों पर रिसर्च कर रही है। अभी तक ये माना जाता रहा है कि लंबे समय तक शुगर और ब्लड प्रेशर रहने के कारण ही किडनी पर असर पड़ता है। अब इसके अलावा नई थ्योरी सामने आ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि लंबे समय तक पेन किलर यानी दर्द निवारक दवाओं के उपयोग के कारण भी किडनी की बीमारी बढ़ती जा रही है। इस बात की पुष्टि एम्स, डीकेएस और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों ने की है।

एम्स के नेफ्रोलॉजिस्ट, डॉ. विनय राठौर, डीकेएस के विशेषज्ञ डॉ. प्रफुल्ल दावले और डॉ. प्रवाश चौधरी ने बताया:-

डॉक्टर से बिना पूछे ही दवाइयां लेना होता जा रहा घातक
अभी तक ये थ्योरी थी कि किडनी का इंफेक्शन केवल बीपी-शुगर वाले मरीजों में होता है। ये तब होता है जब लंबे समय तक बीपी का इलाज न कराया जाए और शुगर बढ़ा रहे। ऐसे मरीजों में ही ज्यादातर किडनी फेल की समस्या आती थी। अब दर्द निवारक गोलियां भी बड़ा कारण बनकर सामने आ रही है। दुकानों में दर्द निवारक गोलियां आसानी से मिल रही हैं। इसकी वजह से किसान और मजदूर वर्ग ज्यादा प्रभावित हो रहा है। मजदूर वर्ग के लोग पानी कम पीते हैं। हाथ-पांव में दर्द होता है तो पेन किलर का उपयोग कर लेते हैं। यही स्थिति रहने से इंफेक्शन शुरू होता है।

प्रदेश में अर्जियां जमा लेकिन नहीं मिला एक भी आर्गन
राज्य में केडेवर पॉलिसी यानी ब्रेनडेड मरीजों के आर्गन डोनेशन की योजना लागू होने के एक महीने के भीतर 100 से ज्यादा लोगों ने आवेदन लिए हैं। अब तक 43 आवेदन जमा हो चुके हैं। हालांकि अब तक एक भी ब्रेनडेड मरीज का आर्गन दान में नहीं मिला है। अब तक पांच प्राइवेट अस्पताल केडेवर पॉलिसी के तहत आर्गन ट्रांसप्लांट के लिए सोटो यानी स्टेट आर्गन ट्रांसप्लांट एजेंसी में रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं, लेकिन आर्गन नहीं मिलने की वजह से किसी भी मरीज को इस योजना का अब तक लाभ नहीं मिल पाया है। ट्रांसप्लांट की सुविधा मिलने से किडनी मरीजों को राहत मिलेगी।

सालभर में ही डायलिसिस पर 13 करोड़ से अधिक खर्च
दो साल पहले तक डायलिसिस का खर्चा मरीज को खुद उठाना पड़ता था, लेकिन सरकार के द्वारा डायलिसिस को आयुष्मान और डॉ. खूबचंद बघेल योजना के तहत फ्री किया। इसके बाद से इस पर आने वाला पूरा खर्च स्वास्थ्य विभाग उठा रहा है। विभाग द्वारा पिछले साल डायलिसिस पर होने वाले खर्च का भुगतान अस्पतालों को किया गया। सालभर में ही 13 करोड़ रुपए से अधिक का भार विभाग पर आया तब इसकी जानकारी सामने आई कि किडनी के मरीज काफी बढ़ रहे हैं।

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