डाॅ मिर्जा के कलम से…👇👇 ,शिशा टूटे गुल मच जाए…दिल टूटे आवाज न आए…सांप डसे तो दोस्त बचाए…दोस्त डसे तो कौन बचाए ,अपनों से तो गैर ही अच्छे…घर का भेदी लंका ढाए ,दुश्मनों ने तो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है…दुश्मनी की तो क्या पूछिए… शायद नेता जी को समझ आ जाए

Editor In Chief
डॉ मिर्जा कवर्धा
डाॅ मिर्जा के कलम से…👇👇
जिन्दगी मे हर इंसान के जीवन मे वो मकाम आता है वो ईश्वर वो मालिक उसको हर खुशी नवाजता है लेकिन समय के साथ कुछ ही समय मे साथ देने वालों को वो शक्स बहोत जल्द ही भूल जाता है.. ये उस इंसान की गलती नही है उसे जो पद प्रतिष्ठा इज्जत शोहरत धन दौलत मिलता है साथ ही अवसरवादी चाटुकार गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले नेता मिलते है जिनके वजह से उस नेता का मिजाज सातवें आसमान मे जाकर कुछ ऐसा हो जाता है कि उसे चुनाव के दौरान जो समर्पित कार्यकर्ता जो तन मन और धन से दिन रात मेहनत करता है चुनाव जीताकर लाता है वो नेता उन्ही कार्यकर्ताओं को भूल जाता है।
ऐसे मे जब उस कार्यकर्ता दिल टूटता है तो ऐसे लगता जैसे शीशा उसके दिल मे टूट गया है पर ये वक्त है जनाब… बदलता जरूर है जैसे मुठ्ठी से रेत फिसलता जरूर है फिर अहम किस बात का है आज जमीन के ऊपर हो तो कल जमीन पर ही आना होगा।
वक्त रहते सुधर जाए नही तो जनता को सुधारने आता है बस जनता को वक्त का इंतजार है क्योकि घर का भेदी लंका ढाए…और इतना समझाने के बाद भी समझ न आए तो फिर.. अपने घर जाए।
सबका सम्मान जरूरी है केवल कुछ ही लोगों को खुश करके बाकी लोगों का दिल तोड़कर श्राप न ले क्योकि जब दोस्त दुश्मन हो जाए तो उससे खतरनाक कोई नही होता।
लिहाजा ध्यान देने की आवश्यकता है…आगे वक्त और माहौल के हिसाब से एक कलमकार पत्रकार फिर लिखेगा जो उसका दिल बोलेगा।